Thursday, April 14, 2016

Modi Bhakt vs Modi-Virodhi : A Political Satire


चहल-कदमी करते नुक्कड़ पे कुछ लोगों से गुफ्तगू हुवी
कुछ मोदी भक्तों की तो कुछ विरोधी भक्तों की जमात थी
छप्पन इंच की छाति फुलाये एक मोदी भक्त बोले
अब मोदी जी आ गए हैं १ रूपया १०० डॉलर में बिकेगा
गोपालगंज में पास्ता और whitehouse में लिट्टी-चोखा सजेगा
बनारसी पान का ऐप्प बनेगा और घर-घर कमल खिलेगा
डिजिटल इंडिया , बुलेट ट्रेन एवं मेक इन इंडिया अपने गावं पहुंचेगा
बुड-भक ये कोई और नहीं अपना हर-हर मोदी करेगा
हम अवाक से थे कहा भाई मोदी को इंसान ही रहने दो
भगवान  समझ इंसानी क़ाबलियत को न अनदेखा कर दो
भक्ति में क्यों इस कदर लीन कि ना विवेचना करों न आलोचना करने दो
भाई मोदी को इंसान ही रहने दो
तभी एक विरोधी भक्त टपक पड़े
ये भक्तों से चार कदम आगे थे
मेरे करीब आके बुदबुदाये
पेरिस में हमला मोदी ने
नेपाल में भूकम्प भी मोदी ने
अरे २००२ क्या सर जी ये दादरी भी खुद मोदी ने ..hmm
हम धड़ाम से गिर पड़े
पूछे और भाई ये चेन्नई भी मोदी ने ?
इनके लिए किसी मित्र की लाइन याद आ गयी "बिहार में मोदी की हार जनता की जीत और २०१४ इलेक्शन में मोदी की जीत बंगाल की खाड़ी में उत्पन् मानसूनी हवाओ के दबाव से हुवी"
तभी कुछ AAP वालों ने दबिश दी
ये आपिये ठहरे , टूट पड़े ज़बरदस्त
तुम भ्रष्ट हो, तुम्हारी पैंट भी भ्रष्ट , तुम्हारी शर्ट भी भ्रष्ट
हम धरना करेंगे ,
ना स्कूल , ना सवारी , ना सड़क , ना सरकार चलने देंगे
सकपकाये , कन्फुजियाए से हम पूछे "भाई पूरी कायनात भ्रस्ट है ? बताएँगे कैसे?"
बोले हमारे केजरी ने आकाशवाणी की
उत्सुकता बड़ी पुछा "मफलर पहने थे केजरी जी ?" ( ठंड है ना )"
आँखों में भगवान केजरी का मफ़लरी विराट रूप लिए , टोपी सम्हालते फक्र से आपीए बोले
भगवान केजरी के मफलर में पूरी दुनिया का समावेश है
वही पवित्र , वही सर्वविद्धिमान , सर्वशक्तिमान है
इसके आगे हमहि पूरा कर दिए
उन्ही से भ्रस्टाचार उत्पन्न होता है उन्ही में समां जाता है
तभी एक आम आदमी सब्जी का थैला उठाते हुवे बोला "भाई साहब ये सब आप वाले चिरकुट हैं "
एकदम सटीक उपाधि बहुत क्रन्तिकारी , बहुत क्रन्तिकारी , बहुत क्रन्तिकारी

Friday, April 8, 2016

Pados Ke Sharma Ji (पड़ोस के शर्मा जी ! ) : Pati, Patni aur Mayeka


गर्मियो की छुट्टियों की चहल पहल के बीच कुछ विचार मन में आये। सोचा कुछ लिखूं।


पड़ोस में शर्मा जी हुवा करते थे। एक मध्यम वर्गी परिवार.  थोड़े खूँसट किन्तु एक नेक इंसान।  गर्मियों की छुटियाँ आते ही Mrs शर्मा की माईके की तैयारी होती और शर्मा जी पे झांझाटो का पहाड़ आन पड़ता। साल भर की मर्दानगी चार हफ़्तों में पत्नी के बिना छू मंतर हो जाती।  पत्नी को विदा करते वक़्त बेबस बालक की तरह बेचारे बोल ही पडे  'अरी भगवान ! थोड़ी जल्दी आ जाती तो अच्छा रहता अब् रोज रोज पडोसी की चाय... ' ( शर्मा जी शायद कहना चाहते थे तुम्हारी चाय तो साल भर से पी रहा था मगर स्वाद अब जाके पता चला, मगर उस ज़माने के मर्द थे, आखिर कहते कैसे। )

उधर शर्मा आंटी का दिल पति की स्थिति पे पसीजता तो था मगर अपने महत्तव  एवं  प्रभुत्वा का उनको  इस वक़्त गज़ब का एहसास होता ।   पत्नी  को ये एहसास हो कि पति उसके बिना मायूस और हतास है  तो फिर उसको और क्या चाहिए। उन दिनों   पत्नयों को यह  एहसास प्रकट करने की आदत न थी।   पारिवारिक  ज़िम्मेदारियों तले दबी नारी को खुद का व्याख्यान  गौड़ सा लगता था। पुरुष प्रधानता का जमाना जो ठहरा।  बहरहाल इधर शर्मा जी दर-दर की ठोकरें खाते। न ही कनस्तर में आटे  का पता , ना  चावल में पानी का।   ऊपर से पड़ोसियों की मेहरबानी, बेबसी  का एहसास दिलाती रहती ।  अधिकार की आदत को निवेदन में बदलना इतना सरल न था शर्मा जी के लिए।   साल भर पत्नी के सहारे थे , रौब अलग ,  अब् भुगतना ही था. मुझे तो शर्मा अंकल की परिस्थिति सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की "वो तोड़ती पत्थर " वाली नारी से ज्यादा दयनीय लगा करती थी।  इंतज़ार में शर्मा जी किसी तरह समय निकलते , पत्नी को रह रह के याद करते और मन ही मन सराहा करते। एक दिन रसोई में खट-खट की आवाज़ के साथ बुदबुदा रहे थे " शुहाशिनी आएगी तो पिछले साल की ही तरह इस साल भी सिनेमा देखेंगे और होटल में खाना खाएंगे।  हमारी महरारू कितना ख्याल रखती हैं हमारा , ये प्याज ने तोह रुला ही दिया... हट !"

उधर Mrs शर्मा को भी  उनकी चिंता खाये जाती।  शर्मा जी के बिना उनको भी किसी पे चिढ़-चिढ़ करने का मौका न मिल पाता।  जब उनके पास होती तो दूध उबाल जाने पे अखबार में घुसे शर्मा जी पे सारा गुस्सा फोड़ डालती थी मगर इधर माँ के घर में किसपे इतने हक़ से ऐसा प्रेम प्रकट कर पाती बेचारी श्रीमती जी।  अब  माँ की छोटी बच्ची तो रही नहीं।   खैर वह भी एक दौर था।

अब नया दौर है , शर्मा जी के एक ही सुपुत्र हैं Mr सिद्धार्थ शर्मा।  उनको आजकल लोग Sid या फिर dood (dude ) बुलाया करते हैं. एक कन्या  तोह सिर्फ  "Si" पे ही सिमटा देती हैं।  Sid की शादी हुवी बच्चे भी हुवे। Sid की Darling spouse हैं  MS  रीता बर्मा। ( गलती से Mrs न लगा दें ) .  कुछ पार्टियों में सिड अपनी पत्नी को "शी इज़  माय पार्टनर" करके भी  मिलवाया करते हैं ।  ये आजकल कुछ ज्यादा कूल लगता है। वाइफ , वीबी , पत्नी थोड़ा घिसा-पिटा सा लगता है।    Among Divas ( ladies) she is called "Ri", just the "Ri babe". शर्मा जोड़े में भी प्रेम हुवा करता था जो उनको पता नहीं था।  Sid-n -Ri के  लिए  लोग बोलते हैं "They  are damm romantic couple. They  express a lil more than they actually do. Especially in Public"
गर्मियों की छुट्टियां अब भी पड़ती हैं।  Here Sid eagerly waits for the summers to come. He has his plans meticulously planned with scotch , vodka, tub, pitcher, pub hopping, guys gang etc and is more excited than he was for his first date. And then finally the time comes and fortunately wife does not cancel her plans. And now Sid is king. Unlike his dad's  time, Sid has everything at home running smoothly. Everything is completely outsourced and automated ( except for romancing with wife Thank God). 
Ri is having her sweet time catching up with some forgotten skills like cooking with ma ( पता नहीं किसलिए ). Ri left corporate Job sometime back. She tells ma “I was fed up with the peer pressure, office politics. See  mom,  Men and women both do not like a women as  their boss. Every women is jealous of every other women and men are MCP by DNA. और वैसे भी माँ मेरी सैलरी से थोड़ेहीना घर चलना है।  और आप ही न कहती थी कि बेटा  तू नौकरी कर मगर लड़का ऐसा ढूंढना कि तुझे नौकरी ना करनी पड़े।  Sid is just that. Mom your  Damadji  is capable enough, he makes a lot to take care of us. And I have made enough for my shopping, don’t have to ask Sid for it. So I am just chilling”.

शर्मा जी बीवी पे रौब ज़रूर जमाते थे और सोचते थे कि उनकी बीवी उनके काबू में है।  परन्तु गहराई में जाया जाय तोह किंग तो श्रीमती जी ही थी, दरअसल शर्मा जी कई मामलों में अपनी श्रीमती के गुलाम थे।  ये लड़का Sid स्मार्ट है।  Sid is always at his toes when wife commands . And “Ri” is happy thinking that her husband is in her complete control.परन्तु  गहराई से देखें तोह यहाँ परिस्थिति एकदम उलट लगती है।
किसी दोस्त ने एक बार चर्चा में कहा "Interestingly the women liberalization seem to have liberated the men". उसकी बात पूरी तरह मानी या खारिज नहीं की जा सकती है।  मगर आदमी ज्यादा नहीं बदला है।  बल्कि पहले से ज्यादा ज़िम्मेदार एवं सवेंदनशील हो गया है।   इस छोटी कहानी के आधार पे निकाला गया निर्णय हालाँकि संकीर्ण होगा,  मगर विश्लेषण के लायक ज़रूर है।   As Spiderman says “Authority comes  with ownership. Liberty and ownership  are opposite side of the same coin ”. बहरहाल विषय को ज्यादा गंभीर ना किया जाय।

इधर Sid  के कुछ ही दिन बचे हैं फिर Ri आने वाली है।  ऐसा नहीं है की उसको "Ri " का इंतज़ार नहीं है।  Sid कहता है "यार बीवी होनी ज़रूर चाहिए परन्तु ऐसे जैसे कि नहीं हो " अब ऐसा तो भगवान् विष्णु अपने साथ भी नहीं कर पाए।  नादान है अपना Sid . Sid के दोस्त भी मायूस हैं , सोच रहे हैं कुछ दिनों बाद अपना Sid ऐसा नहीं रह पायेगा , पब के बजाय groceries में और खेल के मैदान के बजाय चिल्ड्रेन्स पार्क में ज्यादा दिखेगा।  ऑफर भी कर रहे हैं 'dude, we’ll book another flight tickets for your wife and kids, ask them to stay back another month and relax'

इधर शर्मा जी आजकल के तौर तरीके से काफी प्रभावित हैं।  कहते हैं "यार  हमारी तोह ज़िन्दगी इस लमरेटा को झुकाते झुकाते झुक गयी, और  फिर ये मारुति ८०० ली तो बच्चे कहते हैं छोटी है.... कमाल है। " रिटायर हो गए हैं।  अपने और  पत्नी के लिए iphone ले लिए हैं.  फसबुकिंग में महारत हासिल कर चुके हैं ।  व्हट्सप्प पे अपने सरकारी  डिपार्टमेंट के बुढ़ाये दोस्तों का ग्रुप बना लिया है।  रोज़ सवेरे पूजा-पाठ से पहले गुड मॉर्निंग मैसेज ज़रूर भेजते हैं. और अब तो व्हाट्सप्प जोक्स का चस्का भी  सर चढ़ चुका  है। ट्रंक कॉल से स्मार्ट फ़ोन का सफर शर्मा जी को अद्भुत लगता है। 

Mrs शर्मा अब वैसी नहीं रही।  एकदम कॉन्फिडेंट हो चुकी हैं।  अब वह भी chill करने पे विस्वाश करने  लगी हैं। Facebook पे अपनी प्रोफाइल बदलती रहती हैं, और शर्मा जी बगल के कमरे से लाइक ढोक के कमेंट लिख देते हैं "OMG u look so beautiful, missing u swthrt". बच्चों ने मम्मी-पप्पा को unfriend कर दिया है मगर शर्मा जी नहीं मानाने वाले।  जोश नया है कहते हैं  " हटा सावन की घटा  अब ज़िन्दगी में हमको जस्ट चिल करना  हैं।"  चाय छोड़ दी है।  कहते हैं diabetes है  , हालाँकि असल वजह कुछ और थी।
 एक दिन Mrs Sharma  फेसबुक अध्यन्न में थी, शर्मा जी  चाय की चरस बो रहे थे तो आंटी ने  शर्मा जी को डपट ही दिया
 'कभी तुम भी बना लो , और तुम कह रहे थे फोटो अच्छी लग रही है।  मगर फ़ोन में घुस के लाइक तो उस  कलमुही, मोटी निम्मी को किया  है तुमने।
शर्मा जी बुदबुदाए
'Dusky n Curvy  हैं निम्मी जी '
'क्या बड़बड़ा रहे हो '
'कुछ नहीं फ़ोन की आदत नहीं है ना गलती से हो गया होगा' सहमाये से शर्मा जी फ़ोन को झटक के बोले
फेसबुक के प्रेशर की मारी आंटी पलटी, त्योरियां चढ़ा के बोली
'मैं जा रही हूँ पारलर, चाय खुद बना लो  ।'
'अबकी मेरी फोटो थोड़ा अच्छी खींचना, फेसबुक के लायक।  एक भी  काम ढंग से नहीं आता आपकों। वो इफ़ेक्ट कैसे डालते हैं वो भी नहीं आता होगा '
शर्मा जी ने चाय ही छोड़ दी।  उस दिन  मार्क ज़ुकरबर्गुआ ने   शर्मा जी की चाय का ऑपेरशन  शट डाउन करा दिया। शर्मा जी को ज़ुकरबारगुवा एवं andriodwa  फिर भी बेहद पसंद है।  आजकल "होम टी डिलीवरी " का अप्प ढूंढ रहे हैं।

में भी इस लेख के बाद फिर से कोशिश  करूंगा ,  मेरी घराड़ी भी मइके जाए।  मैंने अपनी  श्रीमती को बोला "आखिर  माँ-बाप के प्रति भी तो कुछ स्नेह होना चाहिए तुम जाओ १-२ महीने के लिए माईके , में रह लूँगा किसी तरह दर-दर की ठोकरें खा के , और मन भी तुम्हारे बिना कहाँ लगता है मेरा ". परन्तु मेरी बीवी अब मेरी ही तरह हो चुकी है , जितनी चिंता मुझको उसके लिए हो रही है उतनी ही चिंता उसे भी मेरे लिए हो रही है। उसने भी यही बोला  मेरा भी मन कहाँ लगेगा तुम्हारे बिना. में यहीं रहूंगी। और तुम्हारा ढंग से ख्याल रखूंगी "    इस प्रेम  में बहुत  दबाव है।  हाय री किस्मत    मैं कब बीवी को कुछ दिनों के लिए  मिस कर पाउँगा ।  

Safari ka Safar : SLR waale Shukla Ji

सफारी का सफ़र...




अभि बीते माह की बात है , बंगलोर कि गर्मी और बच्चों कि छूट्टी के चल्ते मन बना क्यों न शहर के कोलाहल और दौड भाग से दूर कहीं परिवार के संग छुट्टी मनाई जाए। चहरे पे मुस्कुराहट लिए आग्रह किया 
'अरे कहीं घूमने चलते हैं बाहर , क्या बोलती हो तुम'
'हां पा मुझे होटल जाना ही है '  बेटा तपाक से बोला
उछलते बन्दर को कंधे से उतारते हुवे मैंने बातों का सिलसिला शुरू किया 
'हाँ बे (बेटा ) जायेंगे तू रुक जरा माँ से पूछते हैं' 
पत्नी है इतनी जल्दी हाँ को हाँ और ना को ना थोडेहीना बोलती है 
'आज क्या हो गया tennis , swimming , guitar और दोस्तों से मोह भंग हो गया?' 
बायीं आँख कि त्योरियां चढ़ाते हुवे बड़बड़ायी  मन में ख़ुशी थी मगर चेहरे के भाव भिन्न थे । पत्नी कुछ और तीखा प्रहार कर पाती बेटा फिर से टपक पड़ा 
'मम्मा वहां beach तो होना ही चाहिए'  इससे पहले बात बढ़ती बेटा बीच बीच में कूद पड़ता 
इस तरह एक तनावपूर्ण फ़िज़ा हंशी के फुवारो में तब्दील हो गयी । खैर हर बार कि तरह अन्ततह तय वाहि हुवा जो मैंने सब्से पहले सोचा था । शुरुवात में प्रस्ताव कि धज्जीयां उड़ गयी मगर आदत हो गयी है और चमड़ी भि तो मज़बूत हो गयीं है। होमवर्क करो , प्रस्ताव रक्खो, धज्जिया ओढ़ने दो , पत्नी के प्रस्ताव को सुनो, उसकी जम के तारीफ़ करो, फिर पत्नि पुनर्विचार करेगी आपकेँ प्रसताव पे और हुवा वही
 'hmm your plan indeed is the perfect plan my dear. Yes yes yes lets pack to Jungle resorts and safari'
फिर कुछ ही समय में जाने कि उत्सुकता चरम सीमा पे थी|
हमारा पहला पड़ाव कावेरी नदी के तट पर था। कावेरी अपने छरहरे यवन में अत्यंत मोहक लग रहि थि, ग्रीष्म ऋतू का प्रभाव दिखाई पड रहा था। यों जान पड़ता था मानो कोई नवयुवती अपने कुल्हे में गागर लटकायी , इठलाती , पानी छलकाती, अनवरत छम-छम-छम-छम चली जा रही हो। मौसम भोजन और जगह का तालमेल मन मुताबिक हो गया। ढलते सूरज की रोशनी में कल-कल-कल छल-छल बहती कावेरी , उत्तर दिशा में घनघोर घटाओं की छठा , घने वृक्षों पे चहचहाते पक्षी एवं नदी में झूलती वृक्षों की शाखाएं; प्रक्रति का यह विहंगम दृश्य रह रह कर मुझको इंटर कॉलेज की कविताओं का स्मरण करा रही थीं। प्रकृति के आगोश में हम डूब चुके थे। पत्थरों पे टकराती कावेरी की धारा से अठखेलियाँ खेलते हुवे, मगरमछ  की आहट और मछलियों कि छपछपाहट एवं जंगली पशुओं कि धर्ड-धर्ड के बीच हमारि शाम बेहद रोमांचक गुजरी
दूसरे रोज़ हम अपने प्रमुख गंतव्य कि ओर निकल पड़े। ५ -६ घंटे सफर के बाद हम पहुँच गये The Jungle lodge . धुप तेज थी, दोपहर में बूफे लंच में मुर्गी और बियर गटकने बाद बिस्तर में धड़ाम से पड गया। सायं ४ बजे जंगल सफारी को कूच करना था। लॉज के कर्मचारी ने ३. ४५ पर ही चरस बोना शुरू कर दिया "saar jeep is ready". खैर जंगल सफारी की उत्सुकता हमकों भी बहुत थीं , किंतु उस रोज़ ये कमबख्त भूख, बियर और नींद बेडा गर्क करने को तुले थे। प्रयास मुझे ही करना था
 'चलो-चलो आज शेर, टाइगर देखेंगे सुना है बहुत हैं यहाँ आज मज़ा अयेगा' मैंने माहौल बनने का प्रय्त्न किया 
' जीप खुली वाली तो नहि होंगी न ' पत्नी ने संकोष प्रकट किया
 'अरे तो क्या हुवा मैं हूँ ना , तुम्हरे रह रहा हूँ ना' मैं हँसते ही चुप हो गया
बहरहाल ३. ५५ पे हम जीप के निकट हैट-वेट चस्मा-वस्मा पहन के पहूंच गये।  जीप में एक परिवार पहले से तैयार था। सबकी नज़रें सीधी मेरी ओर थी , में सहम सा गया, फिर अपनी घड़ी देखि, ३. ५५ ही हुवे थे। 
'हम तो ५ मिनट पहले आ चुके हैं , ये तो ऐसे देख रहे हैं मानो घंटे भर कि देरी हो गयी हो ' मन ही मन जबाब दिया।
इस परिवार में एक भाईसाहब थे (फिल्मो के सौरभ शुक्ला गोली मारो भेजे में वाले) के डुप्लीकेट , उम्र करीब ४५ की रही होगी , उनकी पत्नी , बेटा-बेटी और बुजुर्ग से अंकल-आंटी । ये SLR फ़ैमिली थीं। National geography औऱ discovery वाले आये होते तो आज शुक्ला जी से पानी मांगते फिरते । गंभीर मुद्रा में शुक्ला जी बीच वालि सीट मेंबैठे आपने 4 फिट वाले SLR को रवा कर रहे थे , आगे की सीट में उनका सुपुत्र 4. 5 फिट के SLR को लेकर पेड़ों , पत्थरों , और टूटे फूटे प्लास्टिक के डब्बों कि तस्वीर उतार के अपने हुनर का प्रदर्शन कर रहा था । बेटा एकदम बाप पे , बेटी जरा हटके थीं। शायद FB अपडेट नहीं दे पाने कि वजह से मुरझहायी सि थी , आग लगे इस नेटवर्क को । हम सबसे पीछे वाली सीट पे बुजुर्ग अंकल के साथ जम गये। 
you see this blue color bird is kingfisher bird” 
आंटी पीछे मुड़ के अंकल को बोली, अंकल से सिर हिलाया।  जीप चल पड़ी। आगे से आंटी सुनती समझति और पीछे मुड़ के अंकल को समझातीं रहतीं।
SLR को लेकर मेरी जानकारी बेहद सीमित है। जीप खर-खर चले जा रही थी मैं शुक्ला जी के SLR पे टकटकी लगाये सोच में डूब गया । कुछ समय पहले का वाकया था, एक dude भाई दूरबीन (telescope ) लेकर डाइनिंग में बैठे अपनी प्रेमिका को नाना प्रकार से निहार रहे थे; हम पास पहुंचे 
'भाई साहब इस दूरबीन से आप ईनके चेहरे पे तारे कैसे देख रहे हो?' आशंका एवं  व्यंग दोनों भावनओं से पूछा 
'What non-sense, it’s SLR camera just shipped from US, look how beautiful my babe is looking
त्यौरियां चढ़ा के भाईसाहब हम पर टूट पड़े, फिर अपनी प्रेमिका कि ओर मुड़े, मुस्कुराये 
'you look best among all ur friends' 
प्रेमिका अपनी जुल्फों को कान में दबाते हुये मुस्कुराई 'thank u honey ..muhh'
 मैं उल्टे पावं अपनी मेहरारू के पास चला गया 
"ऐसा प्रेमी बनने के लिये बहुत हिम्मत चहिये" मन में विचार आये 
  मुंडी झटकी और वापस धयान जीप में लगाया।
जीप जंगल में पहुँच चुकी थी, अंदर का माहौल एकदम शांत, गंभीर, खुस-खुस, फुस-फुस। मैं जंगल से ज्यादा जीप के अंदर के माहौल का लुत्फ़ उठा रहा था। अचानक कुछ हरकत हुयी , आवाज़ आयी 
"I spotted it wait wait" SLR वाले शुक्ला भाईसाहब मैदान में कूदने वाले थे 
 खर-खर-खर-खर .. ठाक करके जीप रुकि। और पल में ही "चररक चररक.. शररक शररक.. ठठक ठठक
पिता पुत्र बंदूकें (SLR camera ) तान चुके थे। कारगिल युद्द छिड़ चुका था।   अब तक मुझे समझ में आ चुका था की आज तो दिख गया भाई टाइगर। मैंने अपना ध्यान शुक्ला जी से हटाया , नज़रें दौड़ाई, इधर देखा , उधर देखा दबाव बढ़ चुक था। शुक्ला जी और उनके सुपुत्र अब तक करीब १०० क्लिक करके मैदान साफ़ कर चुके थे। मैंने भी अपना हाथ जेब में बढ़ाया, चुपके से अपना टूटा फूटा सेल फ़ोन निकाला और काफी मसक्कत के बाद मेरी भी नज़र पड हीं गयीं। विष्वास सा नहि हुवा अपनि आँखोँ को तो बगल में बैठे अंकल की ओर देखा 
'yes there it is , it’s langoor, such a big tail it has' अंकल ने इशारा करके बताया। 
"लँगूर !!! इसके लिए ये सब ताम -झाम"  हैरान था पर व्यक्त नहि कर पाया। 
शुक्ला जी की बन्दूक वाली मुद्रा को फिर देखा, बगल में में पत्नी को देखा। किसी तरह वह अपनी हैरानी दबाये हुवे थी। हंस नहीं पायी । 
सेल फ़ोन को वापस जेब में धर के मन हीं मन बोला  'कम से कम लंगूर कि फोटो तो नहि लुंगा यार'  
खैर युद्ध समाप्त हुवा जीप आगे बड़ गयीं
अगले ५ मिनट शुक्ला जि और सपुत्र मैं "बेस्ट क्लिक" का कम्पटीशन शुरु हुआ। कुछ समय बाद एक-दो हिरन, बारहसिंघा इत्तियादि दिखयि दिये। मुझे अपने ड्राइवर कि बात याद आयी। रिसोर्ट आते वक़्त रास्ते में ढेरों हिरन, बारहसिंघा नीलगाय दिखाई दे रहे थे , ड्राइवर ने कन्नड़ा-हिंदी लहजे में पुछा था "सार फोटो ले लो वो हिरणो का झुन्ड पानि पी रहा है सार वो क्या बि नहि करेगा" । खर-खर-खर जीप चलते जा रही थी मगर आज जंगली जानवर हॉलिडे मानाने गोवा beach गए थे। सोचा थोड़ा जीप में हि फोकस किया जाय। शुक्ला जी की बेटी को कोई मन नहीं था, मक्खी को हटाते हुवे बड़बड़ाई "It’s annoying eee.yya .”. शुक्ला जी सिर्फ़ खुस-खुस और फुस-फुस से काम चला रहे थे। शुक्ला जी कि पत्नी बेटे को बीच बीच में पानी पिला रही थी। आखिर कारगिल युद्ध जो लड़ रहा था लाडला। आंटी भी बहुत धीर-घम्भीर बैठी टाइगर से ऑटोग्राफ का इंज़ार कर रही थी। और मेरी अंकल से थोड़ी बात-चीत चल रही थीं , उन्से डर थोङा कम लगता था , और तभी "shhhh ..shh” आंटी ने मेरी तरफ़ घूरते हुवे ऊँगली अपने होठोँ पे आड़ा दी। में और अंकल एकदम चुप. जीप कि खर-खर से तो हमारी आवाज़ ज्यादा मधुर थीं। किन्तु आंटी सीरियस थी, टाइगर से ऑटोग्राफ लेके हि जाने वालि थीं।
जीप चलती गयी इंतज़ार बढ्ता गया , उम्मीद कम होती गयी। फिर अचानक कुछ आवाज़ आयी, शुक्ला ज़ी एकदम अटेंशन कि मुद्रा में आ गये। सबसे पहले मेरी तरफ देखा , नज़रों से धमकाया "Mr जस्ट कीप योर माउथ शट". कुछ जानवर और पक्षी लगातार एक तरह कि आवाज़ दे रहे थे। 
"This is the wakeup call.. it’s definitely behind this big tree” शुक्ला जी फूस-फुसाते हुवे बोले
ऐसा मालूम पड़ता था जैसे शुक्ला जी को जँगल का चप्पा चप्पा पता हो। जीप में किसी को हिलने अनुमति नही थी। शुक्ला जी के सटीक अनुमान से जीप का ड्राइवर भी भौचक्का सा था । परन्तु ड्राइवर को तो पता ही था , रोज़ कि आदत होगी। ड्राइवर शुक्लाजी की फूस-फुसाहट को ठेंगा दिखाते हुवे जोर से बोला "नहीं है सार" टोपी उतार के धुप्प से मक्खी मारने लगा। १० मिनट तक हम मैदान में डटे रहे। मैंने तो selfie ले ली. और फिर से सोच में डूब गया।
आज वेक-उप कॉल देने वाले जानवरो और शेर के बीच साठ गांठ हो गयी थी। जंगल में एक शभा हुवी और फ़रमान ज़ारी किया गया कि अब से इन्सान का भेजा फ्राई किया जायेगा। शेर ने लंगूर एवं अन्य वेक-उप कॉल देने वाले जानवरों को सममन भेजा "तुम मेरे राज मेँ रहते या इंसानो के?" सभी ने शेर कि बात सुनी , भेजा फ्राई प्रस्ताव पे हामी भरी। पहले जब शेर आता तो वाकेउप कॉल होति और इन्सान SLR से टूट पड़ता। मगर अब जब इन्सान आता तो वाकेउप कॉल शेर के लिये होति और वो सड़क से बच लेता. आज सारे शेर जंगल के अंदर से इंसान को बेवकूफो कि तरह SLR ताने देख मजे ले रहे थे। शुक्ला जी की १०० -२०० तस्वीरिएं शेरो ने ले ली होंगी। आज रात को शभा में ख़ूब मजे लेंगे सारे जानवर। तभी मेरी झपकी टूटी 
"I am sure he was here, it must have ran away from that side" बड़बड़ाते हुवे शुक्ला जि ने बंदूक अन्दर कर लि। ड्राइवर ने चैन की सांस लेते हुवे गियर दे डाला। जीप खर-खर चल पड़ी।
चलते चलते मैन भी अपने अनुभव ठोक डाला
 "I have been to many safari but damm it what you endup spotting is deers only hahaha ” अंकल कि तरफ़ ज्ञान बाटते हुवे बोला 
"Which part of the year” अंगूठे को अपनी ठोड़ी ओर दिखते हुवे शुक्ला जि ने पीचे को मूड़ के वार किया
मैं सहम सा गया 
 'I guess it’s been about 3-4 years' किसी तरह से हिम्मत जुटा के जवाब दिया. 
'No-no which month of the year' शुक्ला जी झल्ला के बोले
 'oh must have been winters' थोड़ी हिम्मत बडा के बोला
 'You go now' तर्जनी उंगली सीट ओर मोड़ते हुवे शुक्ला जी ने निष्कर्श निकाल दिया
शुक्ला जी दिल पे ले चुके थे , शेरों के संग रोज का आना जाना जो ठहरा। जो भी कहो शुक्ला जी हमें बहुत बहुत प्यारे लगे.
अब तक जीप में सबको हकीकत पता चल चुकीं थि. पड़ों , पत्तियों, पक्षियों कि ओर बन्दूको को तान दिया गया। मैंने सोचा ज़रा में भी अपनी उपस्थिति महसुस करा दू। जीप के बाहर ध्यान दौड़ाया। मुझे एक जंगली मुर्गा दीखाई दिया। 
सेल फ़ोन निकालते हुवे मैं बोल पड़ा 'Wait-wait here it is..on that tree branch' 
जिज्ञासा से जीप के सारे लोगो ने मेरी तरफ़ एक साथ नज़र दौड़ाई , मैंने स्टाइल मारते हुवे कहा 'It’s a wild cock' 
अगले ही पल लज्जा आई , कुछ अज़ीब सा लगा सोचा "wild hen" बोल दिया होता। हिंदी में सोचके अंग्रेजी में बोलने पर यही होता है। क्या करें अंग्रेजी में हाथ तँग जो ठहरा। थोड़ी देर में झुकी निगाहो से पत्नी की तरफ देखा , कुछ व्यक्त नहि किया , फिर लज्जा का राज खुद हीँ फुसफुसाके समझाया. मुह दबा के हॅंसी। पत्नी ज्यादा इम्प्रेस नहि थी। जीप वापसी का रुख कर चुकी थी।
चलते चलते चमका! फोटो तो हुवी ही नही. तभी फिर से कारगिल युद्द छिड़ चुका था। अबकी बार बाज़ की बारी थी। बन्दूक की नाली बाज़ कि चोच तक हीं पहूंचने वालि थि। मैंने भी सोचा आज सैमसंग स-२ से SLR का मुकाबला कर डालूंगा। बाज़ की फिक्र किसी को नहि थि , फिक्र थि तो फ़ोटो कि बस। नेशनल जियोग्राफी की कसम लेते हुवे खिड़की से आधा शारीर बाहर निकाल के में भी रण्डभूमि मैं तैनात हो चूका था. दे दना दन ताबड़तोड़ फोटो ले डाली, युद्द समाप्त हुवा। आगे सीट पे बैठे शुक्ला जि के सुपुत्र ने पिछे कि तरफ़ बंदूक़ दिखाते हुवे फ़ोटो दिखायीं , मेरी नज़र पड़ी. ज़ूम करके दिखाई थी वाकई बाज़ कि चोच नजर आ रही थि. वश में होता तो में बालक को मेडल तो दे ही डालता। 
'dude तुम तो उड़ते पंछी के पर गिन सकते हो आपने SLR से' मैंने humor लाने कि कोशीश कि
 मगर यहाँ मामला सीरियस था । फोटो कल नेशनल जियोग्राफी में जाने वाली थी।  फिर चुपके से मैने भी जूम इन करके अपनी केमेरे की फोटो देखि. पत्ते और बाज़ के बीच अन्तर पता नहि चल पा रहा था. निराशा हुवी मगर फिर एक अजीज़ मित्र के साथ कुछ बरस पहले अमरीका के सैर कि याद आई और मन बना लिया मैं भी इंटरनेट से एक फंडू बाज़ कि फ़ोटो डाउनलोड करके FB पे लगा के दोस्तों को दिखाऊंगा।
सफारी का सफ़र समाप्ति कि तरफ़ था. रस्ते में फिर मुझे एक विचित्र जानवर दिखायीं दिया. अबकी बार मैं कुछ नहीं बोल. टक टक सिर्फ़ देख्ते रहा। 
"It’s big lizard” पत्नी ने मुझे समझाया.
 मुझसे रहा नहीं गया 
'अरे हमारे कुमाउँनी में इसको ग्वांड बोलते हैं ' मैंने पलटके दिया. पत्नी नें नाक-मुह-आँख तानते हुवे मुझे घूरा , फिर इधर उधर देखा। समझ चुका था, ये शब्द सुनने मैं खराब था अपना माथा पकड़ा 
'अपने देहाती कुमाउँनी होने क showoff करना जरूरी था?' 
आज जुबान में चुड़ैल बैठी थीं। सब कुछ सही सही फिर भी गलत हो रहा था. दरअसल मानसिक प्रदुषण उम्र के साथ बढ चुका है , इसलीये जुबान कि सरस्वतीं दीमाग में दस्तक देते ही चुड़ैल बन जाती है। हम वापस पहुँच चुकें थे। दूसरी जीप सफारी को तैयार थी , एक महानुभाव बंदूक़ को जीप कि छत पे ताने वर्ल्ड वार को तैयार थे।
 'भाई साहब टाइगर हैं?' मुझसे पूछा 
'25 है' मैंने फिर से बताने की कोशिश की भाई साहब सब गये गोवा  परन्तु तब तक जीप निकल चुकी थि, प्रायस व्यर्थ गया.
अगली सुबह हम बैंगलोर को कूच कर गये. अपना ड्राइवर छूटते ही बोल पड़ा 
'सार कल रात एक चीता गाड़ी क्रॉस कर के गया , वो क्या कि खरगोश का पीछा कर रहा था, पर क्या बि नहि कर पाया उसको सार इससे पहलीं रात हाथी आ गया पार्किंग में आयियो रामा'
 मैंने अपने मांथे पे हाथ लगाते हुवे पत्नी की ओर देखा। ड्राइवर फिर से बोला 
'सार यहाँ बहुत टाइगर हैं आपने तो सफरी मेँ खूब टाइगर देखे होंगे'
 मैं बीवी कि ओर मुड़ा, अजीब सी ठगी ठगी सि मुस्कराहट थीं हमारे चेहरे पे
"This is called final nail in the coffin"
. और फिर मुँह फरका के सो गाय. अब कल ऑफिस में ही देखूँगा वाइल्ड इंसानो को.

Graduating to formal blogging..
watch out for this space...

Putting some of my old bogs here. 

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